जिंदगी के सफर में कुछ ऐसे लम्हें होते हैं, जिसको हम बार बार याद करना चाहते हैं और उन यादों से एक अजीब सी ख़ुशी का बोध होता हैं. कर्मचारी विकास केंद्र, सिंगरौली में अपने पचास मित्रों के साथ बिताये हुए साल 2009 के वे दस महीने कुछ ऐसे ही लम्हें थे। प्रशिक्षण, दोस्तों के साथ मस्ती, खेल-कूद इत्यादि के मध्य, हममें से कुछ लोग ऐसे थे, जिनके मन में देश सेवा करने का विचार जन्म ले रहा था. प्रतिदिन संध्या काल इसी विषय पर चर्चा करने में बीत जाता था. आखिर 15 अगस्त 2009 का वह समय भी आया जब हम सभी लोगों ने मिलकर आर्यव्रत छात्रावास के प्रांगण में तिरंगा लहराया और फिर शक्तिनगर में घूमने गये. सभी जगह घूमने के पश्चात, हमलोगों ने विचार किया और कुछ मिठाइयाँ लेकर शिवाजीनगर, जहाँ गरीब, मजदूर लोग रहते थे, पहुंच गये. जीवन का पहला अवसर था जब हमने ये कदम उठाया और एक अनजान डगर की तरफ बढ़ गये. बच्चें इकट्ठे हुए, सबने मिठाइयाँ लीं और देशभक्तों के नाम स्मरण किये. वहाँ पर लोगों से बात करने लगे. एक वृद्धा ने कहा की अच्छे शिक्षक के अभाव में उनके घर की लड़कियाँ पढाई नहीं कर पाती हैं. आशीष कुमार ने सहसा कहा, हमें इन बच्चों को पढ़ाना चाहिए. और यही से जिंदगी का एक नया सफर शुरू हो गया.
अगले रविवार को हम सभी लोग शिवजी नगर पहुँच गये. सभी बच्चें क्रिकेट खेलने में व्यस्त थे. काफी समझाने के बाद भी वे पढ़ने के लिए आने के लिए तैयार नहीं थे. सभी लोग हताश होने लगे. तब दो छोटे छोटे बच्चों ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की और हमने वही पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू कर दिया. कुछ समय पश्चात ही काफी बच्चें अपने अपने घरों से निकल कर आ गए और वही पढ़ने के लिए बैठ गये. कुछ लोगों ने हमलोगो के लिए कुर्सियाँ भी ले आये. इसी के साथ नवोदय मिशन नीँव पड़ गयी.
पढ़ाने का यह साप्ताहिक कार्यक्रम कुछ समय के लिए ऐसा ही चलता रहा. फिर कुछ विचार कर हमलोगों ने तय किया की बच्चों को प्रतिदिन कर्मचारी विकास केंद्र में ही बुलाया जाय. अधिकारियों ने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और प्रशिक्षण केंद्र का एक कमरा इस कार्यक्रम के लिए दे दिया गया. अब प्रतिदिन 70-80 बच्चें विभिन्न ग्रामों-बस्तियों से पैदल चल कर आने लगे. अभियंता प्रशिक्षु भी शाम के दो घंटे उनके साथ बिताने लगे.
युवां जब भी कुछ कार्यक्रम करता हैं, तो उसकी सोच बहुत बड़ी होती हैं. हमलोग भी यही सपना देख रहे थे की इन बच्चों को पढ़ाकर तेज कर देंगे ताकि वे अपने जीवन में कुछ अच्छा कर सकेंगे. लेकिन एक महीने पढ़ाने के बाद भी जब कोई भी बच्चा कुछ नहीं सीख रहा था, तो सभी का मनोबल टूटने लगा. ऐसा नहीं था की बच्चें सीखना नहीं चाह रहे थे. वे प्रतिदिन आते थे, पढाने पर पढ़ते थे, लेकिन सब भूल जाते थे. इसके बाद विचारों का एक मंथन चला और फिर हमने अपने उद्देश्य में थोड़ा परिवर्तन किया. हमने सोचा बच्चों को पढ़ने से ज्यादा जीना सीखाएंगे. उनकी सोच बदलेंगे. उनका रहन सहन और ढंग बदलेंगे. फिर हमलोगों ने पढाने के साथ साथ खेल करना, बातचीत करना, और कहानियां सुनाना, इत्यादि इत्यादि. इससे बच्चों में काफी बदलाव आने लगा. कुछ बच्चे अच्छा करने लगे. उनके किताब पढ़ने की आदत भी बढ़ने लगे. और इस तरह से सभी के मन में एक नया जोश आ गया और कार्यक्रम चलता रहा. शाम को बच्चें जब एक लाइन से भारत माता की जय और वन्दे मातरम का नारा लगाते निकलते थे, सभी आगंतुक इसकी प्रशंशा किये बिना नहीं रह पाते.
इस कार्यक्रम के माध्यम से पहली बार हमलोगों ने गरीब बच्चों को इतने नजदीक से देखा. किसी के पास अच्छे कपड़े नहीं थे. सभी लड़कियों और यहाँ तक की लड़कों को घर का काम, खाना बनाना इत्यादि करना पड़ता था. इसके बाद भी उनको पढ़ने की इच्छा थी और वे पढ़ भी रहे थे. बच्चों के आचरण में आये परिवर्तन से माता-पिता भी खुश थे और वे हम सभी का विशेष आदर-सम्मान करने लगे थे. अब वे भी हमलोगों के सलाह पर विचार करने लगे थे। कुछ ऐसे भी बच्चे थे जिनके माता पिता नहीं थे. इस पुनीत कार्य से सभी दोस्तों ने साथ दिया था. जीतेन्द्र पालीवाल, आशीष कुमार, शशांक कुमार मिश्र, विकास सूटिया, धीरज पाल, विष्णु कुमार दोकनिया, रविन्द्र कुमार मुर्मू, नारायण रेड्डी, राहुल आनंद, अरुण कुमार अहिरवार, खुशबू गोयनका, साक्षी सिन्हा, सेंकी गुप्ता ने इस कार्यक्रम को चलाने में अहम भूमिका निभाई और ये सभी अपने प्रिय दोस्त बन गये. इसके बाद हमलोगों का अलग अलग जगहों पर ट्रांसफर हो गये. हम सभी के किये प्रयास का यह सिलसिला बाद में भी चलता रहा. अभियंताओं के भीतर सेवाभाव जागृत होते गए और यह सिलसिला शक्तिनगर के साथ-साथ अन्य जगहों पर चलने लगा.
जीतेन्द्र पालीवाल के साथ नवोदय मिशन का एक नये अध्याय 'प्रयास टीम' की शुरुआत एनटीपीसी, रिहंद में किया. गरीब बच्चों के शिक्षा के साथ-साथ सरकारी विद्यालयों में सुधार व अन्य स्वयंसेवी संस्था के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. एनटीपीसी, रिहंद के शिव प्रांगण में निष्ठा जैन के नेतृत्व बच्चों को पढ़ाने का कार्यक्रम की शुरुआत की. पहले की भांति भी यहाँ पर काफी बच्चे आने लगे. एक साल के बाद कर्मचारी विकास केंद्र, रिहंद नगर में श्री बी. एल. स्वामी, अपर महाप्रबंधक के तौर पर आये और हमें कर्मचारी विकास केंद्र में ही बच्चों के कार्यक्रम चलाने के लिए आमंत्रण दिया। दिवाकर कुमार के नेतृत्व में कक्षा 5 से 12 तक के ग्रामीण बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने का कार्यक्रम सुचारू रूपसे चलने लगा. प्रतिदिन 60-70 बच्चें यहाँ आने लगे. सर्वांगीण विकास के लिए किये गए सभी अनुसन्धान यहाँ पर भी लगाया गया. योग की भी शिक्षा दी जाने लगी.
नियमित पढाई के साथ-साथ नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा व पॉलिटेक्निक परीक्षा की भी तैयारी कराया जाने लगा. राघवेन्द्र कुमार के अथक व निरंतर प्रयास से वर्ष 2014 में कृपा शंकर व वर्ष 2015 में शर्मीला कुमारी ने पॉलिटेक्निक परीक्षा पास किया और अब वे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. दोनों गरीब परिवार से आते हैं और दोनों के पिता प्लांट में मजदूरी करते हैं.
सरकारी विद्यालयों में पढाई न के बराबर होती हैं. इससे तेज बच्चे भी अच्छा नहीं कर पाते. इस साल चौदह मेधावी छात्रों को एनटीपीसी रिहंद में चल रहे डीएवी स्कूल एवं सैंट जोशेफ स्कूल में पढ़ने के लिए नवोदय मिशन के अनुरोध पर एनटीपीसी, रिहंद के सामाजिक दायित्व विभाग ने स्कूल फीस देने का आश्वाशन दिया हैं. इससे बच्चों का भविष्य और भी उज्जवल होगा।
इन सभी कार्यक्रमों के साथ साथ हमलोगों ने सिरसोती ग्राम में भी कार्य की शुरुआत किया. वहां के सरकारी विद्यालय में बच्चों का मनोबल बढ़ाया और नयी दिशा दिया. वहां के कई नौजवान अब इस मुहीम में जुड़ गए हैं और सिरसोती का विकास कैसे होगा, विचार करने लगे हैं. नशाबंदी के प्रयास किये जा रहे हैं. वहां का एक युवक अभिमन्यु जायसवाल ने नवोदय मिशन की प्रेरणा से एक विद्यालय भी शुरू किया और बच्चों को अच्छी शिक्षा कैसे मिले उसका प्रयास करने लगा हैं. वर्ष 2012 में सिरसोती खेल महाकुंभ का आयोजन किया गया, जहाँ कई ग्रामीण बच्चों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया. इसके बाद इस विद्यालय में खेल के प्रति जागरूकता बनाया रखा और इसका परिणाम वर्ष 2015 में आया जब सोनभद्र, मिर्जापुर एवं भदोही तीन जिला में केवल इस विद्यालय के 24 छत्रों के दो दल राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता मे चयनित हुए और वे वहाँ सफलता के परचम लहराया। इस साल नवोदय मिशन के द्वारा एक पुस्तकालय चलाया जा रहा हैं. वहां कम्प्यूटर सेंटर भी चलाया जा रहा हैं और डिजिटल इंडिया मिशन के अनुरूप सिरसोती को डिजिटल ग्राम बनाने की भी कल्पना को साकार किया जा रहा हैं. इस मुहीम में योगेन्द्र कुमार, गौरव श्रीवास्तव का बड़ा योगदान हैं. ग्रामीण बच्चों में व महिलाओं में भी वैज्ञानिक सोच का विकास किया जा रहा हैं और ग्रामीण शोध के लिए भी प्रशिक्षित किया जा रहा हैं. आदिवासी बच्चों के ऊपर विशेष ध्यान जा रहा हैं.
नवोदय मिशन के सदस्यों ने सेवा समर्पण संस्थान के द्वारा चलाये जा रहे आदिवासी बच्चो के छात्रावास व विद्यालय के नवीनीकरण के लिए काफी कोशिश की हैं. वहां कंप्यूटर सेंटर खोलने में अहम भूमिका अदा किया। एनटीपीसी सामाजिक दायित्व विभाग व कर्मचारियों के द्वारा अनुदान दिलाते रहे हैं. वहां के बच्चों के शैक्षणिक स्तर में काफी सुधार हुआ हैं.
अजय वर्मा के नेतृत्व में गांधी धाम, एनटीपीसी में कार्यरत सफाई कर्मचारियों की बस्ती में भी शिक्षा का काम किया हैं. जनवरी 2014 से बस्ती की सफाई कार्यक्रम भी चल रहा हैं, जो अब स्वच्छ भारत का एक अंग बन गया हैं. समय समय पर नवोदय मिशन का शैक्षणिक अंग "नवोदय डेवलपमेंट एंड रिसर्च सोसाइटी" के द्वारा सर्वेक्षण भी होता हैं और उनके जीवन स्तर सुधारने के प्रयास भी हो रहे हैं.
सपने आसमान छूने के हैं. ये सभी प्रयास उसी दिशा की और जाते हैं. प्रारब्ध से नवोदय मिशन के सदस्यों की ये कोशिश रही हैं की सैकड़ो युवाओं को सेवा के इस महती कार्य से जोड़कर देश के विकास में महती भूमिका निभाएँ. अब केवल शिक्षा नहीं, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना हमारा उद्द्येश्य हैं और सम्पूर्ण सोच में परिवर्तन हो यही हमारी कल्पना. ग्रामीण बच्चे पहली बार अहसास करते हैं भारत देश का.